"जिस्म का आखरी मेहमान बना बैठा हूँ,
एक उम्मीद का उन्वान बना बैठा हूँ ,
वो कहाँ है ये हवाओं को भी मालूम है मगर,
एक बस मैं हूँ जो अनजान बना बैठा हूँ ...."


ankit anand

ankit anand



Comments

Popular posts from this blog